Vishnu Chalisa Pdf ( विष्णु चालीसा PDF )
विष्णु जी हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं और त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में वे पालनकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। वे संसार की रक्षा और पालन का कार्य करते हैं। विष्णु जी के कई महत्वपूर्ण पहलू और अवतार हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं:
प्रमुख विशेषताएं:
- शांत और सौम्य व्यक्तित्व: विष्णु जी का व्यक्तित्व शांत, सौम्य और दयालु माना जाता है।
- शेषनाग पर विराजमान: विष्णु जी शेषनाग पर लेटे हुए दिखाए जाते हैं। यह प्रतीक है कि वे सृष्टि के आधार हैं और शांति का अनुभव करते हैं।
- चार भुजाएं: उनकी चार भुजाओं में शंख, चक्र, गदा और पद्म (कमल) होते हैं, जो उनके विभिन्न गुणों और शक्तियों का प्रतीक हैं।
- नीला रंग: उनका शरीर नीले रंग का होता है, जो अनंत आकाश और सागर का प्रतीक है।
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दशावतार:
विष्णु जी के दस प्रमुख अवतार (दशावतार) हैं, जो समय-समय पर संसार की रक्षा के लिए अवतार धारण करते हैं:
- मत्स्य अवतार: मछली का रूप, जिसने प्रलय के समय वेदों की रक्षा की।
- कूर्म अवतार: कछुए का रूप, जिसने समुद्र मंथन में सहायता की।
- वराह अवतार: वराह (सूअर) का रूप, जिसने पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस से बचाया।
- नरसिंह अवतार: आधा मानव और आधा सिंह, जिसने हिरण्यकशिपु को मारा।
- वामन अवतार: बौने ब्राह्मण का रूप, जिसने बलि राजा से तीन पग भूमि मांगी।
- परशुराम अवतार: क्षत्रिय विनाशक ब्राह्मण, जिसने अन्यायपूर्ण क्षत्रियों का संहार किया।
- राम अवतार: मर्यादा पुरुषोत्तम राम, जिन्होंने रावण का वध किया और धर्म की स्थापना की।
- कृष्ण अवतार: योगेश्वर कृष्ण, जिन्होंने महाभारत में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया।
- बुद्ध अवतार: शाक्यमुनि बुद्ध, जिन्होंने संसार को अहिंसा और करुणा का पाठ पढ़ाया।
- कल्कि अवतार: भविष्य में आने वाला अवतार, जो कलियुग का अंत करेगा और सत्ययुग की स्थापना करेगा।
पूजा और महत्व:
विष्णु जी की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है। वे अपने हर अवतार में भक्तों के लिए विशेष पूजनीय रहे हैं। श्रीमद्भागवत गीता, विष्णु सहस्रनाम, और श्रीमद्भागवत पुराण में विष्णु जी के गुणों और लीलाओं का विस्तार से वर्णन मिलता है।
विष्णु जी का पूजा स्थान भारत भर में विस्तृत है, विशेषकर वैष्णव सम्प्रदाय में उनकी विशेष पूजा होती है। तिरुपति बालाजी, बद्रीनाथ, द्वारका, और जगन्नाथ पुरी जैसे तीर्थ स्थान विष्णु जी को समर्पित हैं।
विष्णु जी के प्रति भक्ति, विश्वास और श्रद्धा से व्यक्ति जीवन में शांति, समृद्धि और धर्म की प्राप्ति करता है। उनकी आराधना से भक्तों को पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विष्णु चालीसा ( Vishnu Chalisa PDF )
।। दोहा ।।
जय-जय जगत के स्वामी, जगताधार अनंत।
विश्वेश्वर, अखिलेश, अज, सर्वेश्वर भगवान।।
।। चौपाई ।।
जय-जय धरती-धारी, श्रुति सागर। जय गदाधर, सद्गुणों के सागर।।
श्री वासुदेव, देवकी नंदन। वासुदेव, भवबंधन नाशक।।
नमस्कार, त्रिभुवनपति ईश। कमलापति, केशव, योगीश्वर।।
नमस्कार, सचराचर स्वामी। परमब्रह्म प्रभु, नमो नमामि।।
गरुड़ध्वज, अज, भव भय हरने वाले। मुरलीधर, हरि, मदन मुरारी।।
नारायण, श्रीपति, पुरुषोत्तम। पद्मनाभ, नरहरि, सर्वोत्तम।।
जय माधव, मुकुंद, वनमाली। खलदल मर्दन, दमन कुकाली।।
जय अनगिनत इंद्रियों के स्वामी, सारंगधर। विश्वरूप, वामन, आनंदकर।।
जय-जय लोकाध्यक्ष, धनंजय। सहस्त्राक्ष, जगनाथ, जयति जय।।
जय मधुसूदन, अनुपम आनन। जय वायु वाहन, ब्रज कानन।।
जय गोविंद, जनार्दन, देवता। शुभ फल, तव सेवा में लहते हैं।।
श्याम सरोरुह समान तन की शोभा। दर्शन करते ही, सुर-नर-मुनि मोहित होते हैं।।
भाल पर विशाल मुकुट शिर की सज्जा। उर पर वैजयंती माला की शोभा।।
तिरछी भृकुटि, चाप धारण किए हुए। तीन तिरछे नयन, कमल अरुणारे।।
नाशा चिबुक, कपोल मनोहर। मृदु मुस्कान, मनोहारी अधर पर।।
मणियों की पंक्ति, दशन मनभावन। पीले वस्त्र, तन परम सुहावन।।
रूप चतुर्भुज, भूषणों से भूषित। गदा हाथ, भवदूषण मोचन।।
कज्जल समान करतल सुंदर। सुख समूह, गुण मधुर सागर।।
हाथ में शंख, अति प्यारा। सुहृद ध्वनि, जय देने वाला।।
सूर्य समान चक्र, दूसरे हाथ में। खल दल, दानव सेना संहारक।।
तीसरे हाथ में गदा, प्रकाशमान। सदा तापत्रय पाप विनाशक।।
चतुर्थ हाथ में कमल, धारण किए हुए। चारों पदार्थ देने वाला।।
वाहन गरुड़, मनोगति वाना। तीनों लोक त्याग, जनहित भगवाना।।
जहां पहुंचते हैं, वहां की रक्षा करते हैं। कौन हरि समान भक्तों का अनुगामी।।
धन्य-धन्य महिमा, अगम अनंत। धन्य भक्त वत्सल, भगवंत।।
जब-जब सुरों को असुरों ने दुख दिया। तब-तब प्रकट होकर, कष्ट हर लिया।।
जब सुर-मुनि, ब्रह्मा आदि महेश। सहन न कर सके, अति कठिन क्लेश।।
तब वहां निरंतर, अनेक रूप धारण कर। मर्दन किया, दानवों का दल भयंकर।।
शैया शेष, सागर बीच साजित। संग लक्ष्मी, सदा विराजित।।
पूर्ण शक्ति, धन-धान्य की खान। आनंद, भक्ति, सुख दान।।
जिनका गुणगान, निगम और आगम करते हैं। शेषनाग भी जिनकी महिमा को नहीं पा सकते हैं।।
रमा, राधिका, सिया सुख धाम। वही विष्णु, कृष्ण और राम।।
अनगिनत रूप, अनुपम अपार। निर्गुण सगुण, स्वरूप तुम्हारा।।
वेद भी कहते हैं, इसमें कोई भेद नहीं। भक्तों से कोई अंतर नहीं रखते।।
श्री प्रयाग, दुर्वासा धाम। सुंदर दास, तिवारी ग्राम।।
जगत के हित के लिए, तुमने जगदीश। अपनी बुद्धि से रचा, विष्णु चालीसा।।
जो ध्यान लगाकर, नित पढ़ता है। पूर्ण भक्ति, शक्ति पाता है।।
अति सुख वास, रोग ऋण नाश। विभव विकाश, सुमति प्रकाश।।
सुख आता है, श्रुति गाता है। व्यास-वचन ऋषि नारद कहते हैं।।
मिलता है सुंदर फल, शोक नाश होता है। अंत समय में जन, हरिपद पाता है।।
।। दोहा ।।
प्रेम सहित ध्यान में, हृदय में जगदीश। अर्पित शालिग्राम, तुलसी शीश।।
क्षणभंगुर तन जानकर, अहंकार छोड़। सार रूप ईश्वर देख, असार संसार छोड़।।
सत्य खोजकर, हृदय में धारण करें। एक ब्रह्म ओंकार, आत्मबोध हो तब।।
मुक्ति के द्वार, शांति और सद्भाव। जब उर में फलेंगे फूल, चालीसा का फल प्राप्त होगा।।
एक पाठ नित करें, विष्णु देव चालीसा। चारों पदार्थ, नव निधि, द्वारिकाधीश देंगे।।