Saraswati Chalisa Pdf : बुद्धि , धन की देवी सरस्वती देवी की कृपया पाने के लिय |

      Saraswati Chalisa Pdf ( सरस्वती चालीसा PDF )

 

सरस्वती देवी हिंदू धर्म की प्रमुख देवियों में से एक हैं। उन्हें ज्ञान, संगीत, कला, बुद्धि और वाणी की देवी माना जाता है। वे ब्रह्मा की पत्नी और उनके पाँच मुख्य रूपों में से एक हैं।

सरस्वती देवी का स्वरूप बहुत ही सुंदर और श्वेत रंग का होता है। वे श्वेत वस्त्र पहनती हैं और उनके हाथ में वीणा, पुस्तक, माला और एक पात्र होता है। उनके वाहन हंस को ज्ञान और विवेक का प्रतीक माना जाता है। कभी-कभी वे मोर पर भी विराजमान दिखाई देती हैं, जो कला और सौंदर्य का प्रतीक है।

सरस्वती देवी को संगीत और कला का अधिष्ठात्री माना जाता है। उनका मुख्य पर्व वसंत पंचमी है, जो माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन विद्यार्थी, कलाकार और संगीतकार उनकी पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

उनका उल्लेख कई प्राचीन ग्रंथों में मिलता है, जैसे कि ऋग्वेद, यजुर्वेद और पुराणों में। वेदों में उन्हें नदी देवी के रूप में भी वर्णित किया गया है, और सरस्वती नदी का उनके साथ विशेष संबंध है।

Shiv Chalisa Pdf

सरस्वती देवी का महत्व केवल धार्मिक और आध्यात्मिक ही नहीं, बल्कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है। वे हर प्रकार के ज्ञान और शिक्षा का प्रतीक मानी जाती हैं और विद्यार्थियों के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं।

कुल मिलाकर, सरस्वती देवी ज्ञान, कला और बुद्धि की देवी हैं, और उनकी पूजा से मनुष्य को विद्या, विवेक और संगीत कला में उन्नति प्राप्त होती है।

Saraswati Chalisa Pdf

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॥ दोहा ॥

जनक जननि पद्मरज,
निज मस्तक पर धरि ।
बन्दौं मातु सरस्वती,
बुद्धि बल दे दातारि ॥

पूर्ण जगत में व्याप्त तव,
महिमा अमित अनंतु।
दुष्जनों के पाप को,
मातु तु ही अब हन्तु ॥

॥ चालीसा ॥

जय श्री सकल बुद्धि बलरासी ।
जय सर्वज्ञ अमर अविनाशी ॥

जय जय जय वीणाकर धारी ।
करती सदा सुहंस सवारी ॥

रूप चतुर्भुज धारी माता ।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥4॥

जग में पाप बुद्धि जब होती ।
तब ही धर्म की फीकी ज्योति ॥

तब ही मातु का निज अवतारी ।
पाप हीन करती महतारी ॥

वाल्मीकिजी थे हत्यारा ।
तव प्रसाद जानै संसारा ॥

रामचरित जो रचे बनाई ।
आदि कवि की पदवी पाई ॥8॥

कालिदास जो भये विख्याता ।
तेरी कृपा दृष्टि से माता ॥

तुलसी सूर आदि विद्वाना ।
भये और जो ज्ञानी नाना ॥

तिन्ह न और रहेउ अवलम्बा ।
केव कृपा आपकी अम्बा ॥

करहु कृपा सोइ मातु भवानी ।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥12॥

पुत्र करहिं अपराध बहूता ।
तेहि न धरई चित माता ॥

राखु लाज जननि अब मेरी ।
विनय करउं भांति बहु तेरी ॥

मैं अनाथ तेरी अवलंबा ।
कृपा करउ जय जय जगदंबा ॥

मधुकैटभ जो अति बलवाना ।
बाहुयुद्ध विष्णु से ठाना ॥16॥

समर हजार पाँच में घोरा ।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥

मातु सहाय कीन्ह तेहि काला ।
बुद्धि विपरीत भई खलहाला ॥

तेहि ते मृत्यु भई खल केरी ।
पुरवहु मातु मनोरथ मेरी ॥

चंड मुण्ड जो थे विख्याता ।
क्षण महु संहारे उन माता ॥20॥

रक्त बीज से समरथ पापी ।
सुरमुनि हदय धरा सब काँपी ॥

काटेउ सिर जिमि कदली खम्बा ।
बारबार बिन वउं जगदंबा ॥

जगप्रसिद्ध जो शुंभनिशुंभा ।
क्षण में बाँधे ताहि तू अम्बा ॥

भरतमातु बुद्धि फेरेऊ जाई ।
रामचन्द्र बनवास कराई ॥24॥

एहिविधि रावण वध तू कीन्हा ।
सुर नरमुनि सबको सुख दीन्हा ॥

को समरथ तव यश गुन गाना ।
निगम अनादि अनंत बखाना ॥

विष्णु रुद्र जस कहिन मारी ।
जिनकी हो तुम रक्षाकारी ॥

रक्त दन्तिका और शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥28॥

दुर्गम काज धरा पर कीन्हा ।
दुर्गा नाम सकल जग लीन्हा ॥

दुर्ग आदि हरनी तू माता ।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥

नृप कोपित को मारन चाहे ।
कानन में घेरे मृग नाहे ॥

सागर मध्य पोत के भंजे ।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे ॥32॥

भूत प्रेत बाधा या दुःख में ।
हो दरिद्र अथवा संकट में ॥

नाम जपे मंगल सब होई ।
संशय इसमें करई न कोई ॥

पुत्रहीन जो आतुर भाई ।
सबै छांड़ि पूजें एहि भाई ॥

करै पाठ नित यह चालीसा ।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥36॥

धूपादिक नैवेद्य चढ़ावै ।
संकट रहित अवश्य हो जावै ॥

भक्ति मातु की करैं हमेशा ।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥

बंदी पाठ करें सत बारा ।
बंदी पाश दूर हो सारा ॥

रामसागर बाँधि हेतु भवानी ।
कीजै कृपा दास निज जानी ॥40॥

॥दोहा॥

मातु सूर्य कान्ति तव,
अन्धकार मम रूप ।
डूबन से रक्षा करहु,
परूँ न मैं भव कूप ॥

बलबुद्धि विद्या देहु मोहि,
सुनहु सरस्वती मातु ।
राम सागर अधम को,
आश्रय तू ही देदातु ॥

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