Laxmi Chalisa Pdf : लक्ष्मी जी पसंद करने के लिय सबसे उत्तम उपाय

           Laxmi Chalisa Pdf ( लक्ष्मी चालीसा PDF ) 

लक्ष्मी जी हिंदू धर्म की प्रमुख देवी हैं, जिन्हें धन, समृद्धि, सौभाग्य और वैभव की देवी माना जाता है। वे विष्णु भगवान की पत्नी हैं और त्रिदेवियों में से एक हैं, जिनमें सरस्वती और पार्वती भी शामिल हैं। लक्ष्मी जी का उल्लेख वेदों, पुराणों और उपनिषदों में मिलता है।

लक्ष्मी जी की उत्पत्ति

लक्ष्मी जी की उत्पत्ति के कई कथाएँ हैं, लेकिन सबसे प्रसिद्ध कथा समुद्र मंथन से संबंधित है। इस कथा के अनुसार, देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया, जिसमें से लक्ष्मी जी प्रकट हुईं। वे हाथ में कमल लिए हुए थीं और उनके प्रकट होते ही चारों ओर सुख-समृद्धि फैल गई।

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लक्ष्मी जी का स्वरूप

लक्ष्मी जी का स्वरूप अत्यंत आकर्षक और सौम्य है। वे लाल या गुलाबी रंग की साड़ी पहने रहती हैं और कमल पर विराजमान होती हैं। उनके चार हाथ होते हैं:

  1. एक हाथ में कमल,
  2. दूसरे हाथ में स्वर्ण मुद्राएं,
  3. तीसरे और चौथे हाथ से वे आशीर्वाद और समृद्धि प्रदान करती हैं।

पूजा और त्यौहार

लक्ष्मी जी की पूजा विशेष रूप से दिवाली के त्यौहार पर की जाती है, जिसे धनतेरस से लेकर भाई दूज तक मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग अपने घरों और व्यवसायिक स्थलों की साफ-सफाई करते हैं और उन्हें रोशनी से सजाते हैं। माना जाता है कि दिवाली की रात लक्ष्मी जी अपने भक्तों के घरों में आती हैं और उन्हें धन-धान्य से भर देती हैं।

मंत्र और स्तोत्र

लक्ष्मी जी की कृपा पाने के लिए कई मंत्र और स्तोत्रों का पाठ किया जाता है। इनमें से कुछ प्रमुख हैं:

  1. श्री सूक्त: यह ऋग्वेद का एक प्रमुख सूक्त है, जिसमें लक्ष्मी जी की महिमा का वर्णन है।
  2. लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र: इसमें लक्ष्मी जी के 108 नामों का वर्णन है।
  3. लक्ष्मी बीज मंत्र: “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” इस मंत्र का जाप करके भी लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

लक्ष्मी जी के प्रति श्रद्धा और भक्ति से व्यक्ति को आर्थिक समृद्धि, मानसिक शांति और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। वे न केवल भौतिक धन की देवी हैं, बल्कि आध्यात्मिक धन और गुणों की भी प्रतीक हैं। उनकी कृपा से जीवन में हर तरह की समृद्धि और सुख-शांति प्राप्त होती है।

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            श्री लक्ष्मी चालीसा ( Laxmi Chalisa Pdf )

 

दोहा

मातु लक्ष्मी करि कृपा करो हृदय में वास ।
मनो कामना सिद्ध कर पुरवहु मेरी आस ॥

चालीसा

सिंधु सुता विष्णुप्रिये नत शिर बारंबार ।
ऋद्धि सिद्धि मंगलप्रदे नत शिर बारंबार ॥ टेक ॥

सिन्धु सुता मैं सुमिरौं तोही ।
ज्ञान बुद्धि विद्या दो मोहि ॥

तुम समान नहिं कोई उपकारी ।
सब विधि पुरबहु आस हमारी ॥

जै जै जगत जननि जगदम्बा ।
सबके तुमही हो स्वलम्बा ॥

तुम ही हो घट घट के वासी ।
विनती यही हमारी खासी ॥

जग जननी जय सिन्धु कुमारी ।
दीनन की तुम हो हितकारी ॥

विनवौं नित्य तुमहिं महारानी ।
कृपा करौ जग जननि भवानी ॥

केहि विधि स्तुति करौं तिहारी ।
सुधि लीजै अपराध बिसारी ॥

कृपा दृष्टि चितवो मम ओरी ।
जगत जननि विनती सुन मोरी ॥

ज्ञान बुद्धि जय सुख की दाता ।
संकट हरो हमारी माता ॥

क्षीर सिंधु जब विष्णु मथायो ।
चौदह रत्न सिंधु में पायो ॥

चौदह रत्न में तुम सुखरासी ।
सेवा कियो प्रभुहिं बनि दासी ॥

जब जब जन्म जहां प्रभु लीन्हा ।
रूप बदल तहं सेवा कीन्हा ॥

स्वयं विष्णु जब नर तनु धारा ।
लीन्हेउ अवधपुरी अवतारा ॥

तब तुम प्रकट जनकपुर माहीं ।
सेवा कियो हृदय पुलकाहीं ॥

अपनायो तोहि अन्तर्यामी ।
विश्व विदित त्रिभुवन की स्वामी ॥

तुम सब प्रबल शक्ति नहिं आनी ।
कहँ तक महिमा कहौं बखानी ॥

मन क्रम वचन करै सेवकाई ।
मन-इच्छित वांछित फल पाई ॥

तजि छल कपट और चतुराई ।
पूजहिं विविध भाँति मन लाई ॥

और हाल मैं कहौं बुझाई ।
जो यह पाठ करे मन लाई ॥

ताको कोई कष्ट न होई ।
मन इच्छित फल पावै फल सोई ॥

त्राहि-त्राहि जय दुःख निवारिणी ।
त्रिविध ताप भव बंधन हारिणि ॥

जो यह चालीसा पढ़े और पढ़ावे ।
इसे ध्यान लगाकर सुने सुनावै ॥

ताको कोई न रोग सतावै ।
पुत्र आदि धन सम्पत्ति पावै ॥

पुत्र हीन और सम्पत्ति हीना ।
अन्धा बधिर कोढ़ी अति दीना ॥

विप्र बोलाय कै पाठ करावै ।
शंका दिल में कभी न लावै ॥

पाठ करावै दिन चालीसा ।
ता पर कृपा करैं गौरीसा ॥

सुख सम्पत्ति बहुत सी पावै ।
कमी नहीं काहू की आवै ॥

बारह मास करै जो पूजा ।
तेहि सम धन्य और नहिं दूजा ॥

प्रतिदिन पाठ करै मन माहीं ।
उन सम कोई जग में नाहिं ॥

बहु विधि क्या मैं करौं बड़ाई ।
लेय परीक्षा ध्यान लगाई ॥

करि विश्वास करैं व्रत नेमा ।
होय सिद्ध उपजै उर प्रेमा ॥

जय जय जय लक्ष्मी महारानी ।
सब में व्यापित जो गुण खानी ॥

तुम्हरो तेज प्रबल जग माहीं ।
तुम सम कोउ दयाल कहूँ नाहीं ॥

मोहि अनाथ की सुधि अब लीजै ।
संकट काटि भक्ति मोहि दीजे ॥

भूल चूक करी क्षमा हमारी ।
दर्शन दीजै दशा निहारी ॥

बिन दरशन व्याकुल अधिकारी ।
तुमहिं अक्षत दुःख सहते भारी ॥

नहिं मोहिं ज्ञान बुद्धि है तन में ।
सब जानत हो अपने मन में ॥

रूप चतुर्भुज करके धारण ।
कष्ट मोर अब करहु निवारण ॥

कहि प्रकार मैं करौं बड़ाई ।
ज्ञान बुद्धि मोहिं नहिं अधिकाई ॥

रामदास अब कहै पुकारी ।
करो दूर तुम विपति हमारी ॥

दोहा

त्राहि त्राहि दुःख हारिणी हरो बेगि सब त्रास ।
जयति जयति जय लक्ष्मी करो शत्रुन का नाश ॥

रामदास धरि ध्यान नित विनय करत कर जोर ।
मातु लक्ष्मी दास पर करहु दया की कोर ॥

श्री लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता
तुम को निशदिन सेवत मैयाजी को निस दिन सेवत
हर विष्णु विधाता । ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता । ओ मैया तुम ही जग माता ।
सूर्य चन्द्र माँ ध्यावत नारद ऋषि गाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

दुर्गा रूप निरंजनि सुख सम्पति दाता, ओ मैया सुख सम्पति दाता ।
जो कोई तुम को ध्यावत ऋद्धि सिद्धि धन पाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम पाताल निवासिनि तुम ही शुभ दाता, ओ मैया तुम ही शुभ दाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनि, भव निधि की दाता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

जिस घर तुम रहती तहँ सब सद्गुण आता, ओ मैया सब सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता मन नहीं घबराता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता, ओ मैया वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव सब तुम से आता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता, ओ मैया क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहीं पाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

महा लक्ष्मीजी की आरती, जो कोई जन गाता, ओ मैया जो कोई जन गाता ।
उर आनंद समाता पाप उतर जाता , ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

स्थिर चर जगत बचावे कर्म प्रेम ल्याता । ओ मैया जो कोई जन गाता ।
राम प्रताप मैय्या की शुभ दृष्टि चाहता, ॐ जय लक्ष्मी माता ॥

इति

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