Shiv Chalisa Pdf : शिव चालीसा PDF पढ़िये हर परेशानियों मुक्ति पाईये |

                   Shiv Chalisa Pdf ( शिव चालीसा PDF ) 

शिव जी, जिन्हें महादेव, भोलेनाथ, शिवशंकर, रुद्र आदि नामों से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। वे त्रिमूर्ति का एक हिस्सा हैं, जिसमें ब्रह्मा (सृष्टिकर्ता), विष्णु (पालनकर्ता), और शिव (संहारकर्ता) शामिल हैं। शिव जी को संहारक के रूप में जाना जाता है, लेकिन इसका मतलब विनाशक नहीं बल्कि परिवर्तन और पुनर्जन्म का प्रतीक है।

शिव जी के प्रतीक और विशेषताएँ:

  1. त्रिनेत्र: शिव जी के तीन नेत्र होते हैं। तीसरा नेत्र उनके माथे पर स्थित होता है, जो ज्ञान, शक्ति और विनाश का प्रतीक है। यह नेत्र खुलने पर संसार की सारी नकारात्मकता का नाश कर देता है।
  2. त्रिशूल: उनके हाथ में त्रिशूल होता है, जो उनके त्रिगुण (सत्व, रजस, तमस) के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
  3. डमरू: शिव जी के एक हाथ में डमरू होता है, जो ध्वनि और सृष्टि का प्रतीक है।
  4. नंदी: उनका वाहन बैल नंदी है, जो शक्ति और कार्य की सिद्धि का प्रतीक है।
  5. गंगा: उनकी जटाओं में गंगा नदी बसी हुई है, जो पवित्रता और जीवन का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि गंगा को शिव जी ने अपनी जटाओं में समाहित करके पृथ्वी पर अवतरित किया था।
  6. सर्प: शिव जी के गले में वासुकी नाग लिपटा रहता है, जो उनके विष का नाश करने और जीवित रहने की क्षमता को दर्शाता है।
  7. चंद्रमा: उनके मस्तक पर अर्धचंद्र विराजमान है, जो समय और चक्र का प्रतीक है।

शिव जी के प्रमुख त्योहार:

  1. महाशिवरात्रि: यह शिव जी का सबसे प्रमुख पर्व है, जो फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भक्तजन उपवास रखते हैं और रातभर जागरण करते हैं।
  2. श्रावण मास: यह पूरा महीना शिव जी को समर्पित होता है। इस दौरान भक्तजन व्रत रखते हैं और शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।

शिव जी के प्रमुख धाम:

  1. काशी विश्वनाथ: वाराणसी में स्थित यह मंदिर शिव जी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
  2. केदारनाथ: उत्तराखंड के हिमालय में स्थित यह ज्योतिर्लिंग अत्यंत पवित्र माना जाता है।
  3. सोमनाथ: गुजरात में स्थित यह ज्योतिर्लिंग ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है।

शिव जी की उपासना से भक्तों को शांति, समृद्धि, और मुक्ति की प्राप्ति होती है। वे सरल हृदय वाले देवता माने जाते हैं, जो अपने भक्तों की सच्ची भक्ति से प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं। उनके विभिन्न रूप और कथाएँ हिंदू धर्म की गहन धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।


दोहा

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥

हर हर महादेव कहो जी, भगवान शिव की जय कहो जी!
भक्ति और श्रद्धा से जपो, शिव का नाम हर दिन कहो जी!!

शिव चालीसा

जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥

अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देख नाग मुनि मोहे॥

मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥

नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥

देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥

तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥

त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥

दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥

प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला। जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥

पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥

एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥

जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट से मोहि आन उबारो॥

मातु पिता भ्राता सब कोई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु अब संकट भारी॥

धन निर्धन को देत सदाहीं। जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥

शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। नारद शारद शीश नवावैं॥

नमो नमो जय नमो शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पार होत है शम्भु सहाई॥

ऋणिया जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥

पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा। तन नहीं ताके रहे कलेशा॥

धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥

555 Angel Number Meaning

                                           Shiv Chalisa Pdf

शिव-चालीसा.pdf

×

Leave a comment