दुर्गा चालीसा pdf (durga chalisa pdf )
माँ दुर्गा, हिंदू धर्म में एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें शक्ति, शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। उन्हें कई अन्य नामों से भी जाना जाता है, जैसे कि पार्वती, काली, और अम्बा। माँ दुर्गा को विभिन्न रूपों में पूजा जाता है और उनके प्रत्येक रूप का अपना एक विशेष महत्व है।
जन्म और उत्पत्ति
माँ दुर्गा का जन्म और उत्पत्ति एक अत्यंत रोचक और महत्वपूर्ण कहानी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब महिषासुर नामक एक शक्तिशाली राक्षस ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, तब देवताओं ने त्रिमूर्ति (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) से सहायता मांगी। तब त्रिमूर्ति ने अपनी सम्मिलित शक्तियों से माँ दुर्गा को उत्पन्न किया। माँ दुर्गा को सभी देवताओं ने अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए और उन्हें महिषासुर का वध करने के लिए प्रोत्साहित किया।
माँ दुर्गा के नौ रूप
माँ दुर्गा के नौ प्रमुख रूप हैं, जिन्हें नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है। ये नौ रूप हैं:
- शैलपुत्री
- ब्रह्मचारिणी
- चंद्रघंटा
- कूष्माण्डा
- स्कन्दमाता
- कात्यायनी
- कालरात्रि
- महागौरी
- सिद्धिदात्री
दुर्गा पूजा और नवरात्रि
माँ दुर्गा की पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान की जाती है, जो नौ दिनों का उत्सव होता है। इस दौरान भक्त उपवास करते हैं, विशेष अनुष्ठान करते हैं और देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं। दुर्गा पूजा का पर्व विशेष रूप से बंगाल में धूमधाम से मनाया जाता है, जहाँ इसे ‘दुर्गोत्सव’ के नाम से जाना जाता है। इस अवसर पर माँ दुर्गा की भव्य प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं और बड़े पैमाने पर पंडाल सजाए जाते हैं।
माँ दुर्गा नारी शक्ति का प्रतीक हैं और यह संदेश देती हैं कि महिलाओं में अपार शक्ति और साहस होता है। उनका वाहन सिंह साहस और शक्ति का प्रतीक है, जबकि उनके हाथों में धारण किए गए अस्त्र-शस्त्र बुराई के विनाश और धर्म की स्थापना का प्रतीक हैं। माँ दुर्गा के दस हाथ यह दर्शाते हैं कि वे सम्पूर्ण सृष्टि की रक्षा और संतुलन बनाए रखने में सक्षम हैं।
माँ दुर्गा की स्तुतियाँ और मंत्र
माँ दुर्गा की स्तुतियाँ और मंत्रों का उच्चारण उनकी कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। प्रमुख मंत्रों में “ॐ दुर्गायै नमः” और “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” शामिल हैं। दुर्गा सप्तशती, जो देवी महात्म्यम के नाम से भी जानी जाती है, एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है जिसमें माँ दुर्गा की महिमा और उनकी विभिन्न लीलाओं का वर्णन है।
माँ दुर्गा की पूजा और उनका आशीर्वाद हमें जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की शक्ति और साहस प्रदान करता है। उनकी कृपा से व्यक्ति न केवल बाहरी समस्याओं का सामना कर सकता है, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन भी प्राप्त कर सकता है।
केतु के उपाय लाल किताब
श्री दुर्गा चालीसा पाठ
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥