हनुमान चालीसा के अद्भुत फायदे: आत्मा के शांति का स्रोत:Hanuman Chalisa In Hindi
मनोबल में वृद्धि: हनुमान चालीसा पाठ से मन का भय दूर होता है
हमारे मन में छिपी भय की भावना को कम करता है और आत्मविश्वास में वृद्धि करता है।
चिंता से मुक्ति: मन शांत और एकाग्र रहने की शक्ति
हनुमान चालीसा के पाठ से मन को शांति मिलती है, जिससे चिंता दूर होती है और एकाग्रता बनी रहती है।
रोग और कष्ट से मुक्ति: हनुमान चालीसा का रोग नाशक असर
यह चालीसा न केवल रोग को दूर करती है, बल्कि दुर्भाग्यपूर्ण स्थितियों से भी रक्षा करती है।
सफलता की कुंजी: हनुमान चालीसा से समृद्धि और सफलता की प्राप्ति
यह चालीसा हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने में मदद करती है और आर्थिक समस्याओं से निजात दिलाती है।
आध्यात्मिक बल: मन और मस्तिष्क में ब्रह्मा की अनुभूति
हनुमान चालीसा का पाठ करने से मानव आत्मा में आध्यात्मिक बल बढ़ता है और अद्वितीयता का अनुभव होता है।
शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लाभ: चालीसा के प्रभावशाली फल
हनुमान चालीसा का पाठ करने से तनाव, चिंता, और दुःख से मुक्ति मिलती है, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है।
प्रतिष्ठा और सम्मान: चालीसा का पाठ बढ़ाता है आत्मिक उन्नति
यह चालीसा नकारात्मक विचारों को दूर करती है और आत्मा को सकारात्मकता की दिशा में मार्गदर्शन करती है।
Shiv Chalisa
इसलिए, हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करना जीवन को सुख, शांति, और सफलता की ओर एक मजबूत कदम बढ़ाता है।
॥ श्री हनुमान चालीसा ॥
श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवनकुमार।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार॥
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर॥
रामदूत अतुलित बलधामा।
अञ्जनि पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के सङ्गी॥
कञ्चन बरण बिराज सुबेसा।
कानन कुण्डल कुञ्चित केसा॥
हाथ वज्र औ ध्वजा विराजै।
काँधे मूञ्ज जनेउ साजै॥
शंकर सुवन केसरी नन्दन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुणी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरी सियहि धिखावा।
विकट रूप धरि लङ्क जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लय ए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥
सहस बदान तुम्हरो जस गावै।
अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावै॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा।
नारद सारद सहित अहीशा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कबि कोविद कहि सकै कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दिन्हा॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही।
जलधि लांघि गये अचरज नाही॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोई अमित जीवन फल पावै॥
चारों युग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन्ह जानकी माता॥
रामरसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन रामको पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अन्त काल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरहिं।
हनुमत सेइ सर्व सुख करहिं॥
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोई।
छुटहि बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महं डेरा॥
दोहा:
पवन तनय संकट हरण मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥