काली चालीसा pdf : माँ काली की कृपया पाने के लिय काली चालीसा देखिए |

                                काली चालीसा pdf

माँ काली हिन्दू धर्म की एक प्रमुख देवी हैं, जिन्हें शक्ति, समय, और परिवर्तन की देवी माना जाता है। काली चालीसा pdf   वे दुर्गा के अवतारों में से एक हैं और उन्हें विनाश एवं पुनर्जन्म का प्रतीक माना जाता है। माँ काली को उनके भयंकर रूप, काले रंग की त्वचा, उग्र दृष्टि और रक्तपान करते हुए दिखाया जाता है।

उनका स्वरूप बहुत ही विचित्र और भयावह है। उनके चार हाथ होते हैं जिसमें वे एक हाथ में खड्ग (तलवार) और दूसरे में एक कटा हुआ सिर धारण करती हैं, जबकि अन्य दो हाथों से वे आशीर्वाद और रक्षा का संकेत देती हैं। माँ काली की जीभ बाहर निकली हुई होती है और वे एक काले साँप की माला धारण करती हैं।

माँ काली की पूजा खासकर बंगाल, असम, और उड़ीसा में अत्यंत प्रसिद्ध है। काली पूजा मुख्य रूप से दिवाली के समय की जाती है, जो अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है। काली पूजा के दौरान भक्त माँ काली की प्रतिमा की पूजा करते हैं, उन्हें लाल फूल, बलि, और मिठाइयाँ अर्पित करते हैं और उनसे अपनी रक्षा और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।

माँ काली को बहुत ही शक्तिशाली और करुणामयी माना जाता है, जो अपने भक्तों की हर बुराई से रक्षा करती हैं और उन्हें सभी प्रकार के दुखों और संकटों से मुक्ति दिलाती हैं। माँ काली के भक्त उनके प्रति अटूट विश्वास रखते हैं और मानते हैं कि उनकी पूजा से सभी प्रकार के डर और नकारात्मकता का नाश होता है।

माँ काली की कहानियों में सबसे प्रसिद्ध कहानी तब की है जब वे राक्षस महिषासुर का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं। देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के लिए काली का रूप धारण किया था और अपने उग्र रूप से उस राक्षस का संहार किया था। इसी कारण से माँ काली को अधर्म और अन्याय के विनाश की देवी भी कहा जाता है।

काली चालीसा

जय काली कलिमल हरण, महिमा अगम अपार।
महिष मर्दिनी कालिका, देहु अभय अपार।।

अरि मद मान मिटावन हारी, मुण्डमाल गल सोहत प्यारी।
अष्टभुजी सुखदायक माता, दुष्ट दलन जग में विख्याता।।

भाल विशाल मुकुट छवि छाजै, कर में शीश शत्रु का साजै।
दूजे हाथ लिए मधु प्याला, हाथ तीसरे सोहत भाला।।

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे, छठे त्रिशूल शत्रु बल जांचे।
सप्तम कर दमकत असि प्यारी, शोभा अद्भुत मात तुम्हारी।।

अष्टम कर भक्तन वरदाता, जग मनहरण रूप ये माता।
भक्तन में अनुरक्त भवानी, निशदिन रटें ऋषि-मुनि ज्ञानी।।

महाशक्ति अति प्रबल पुनीता, तू ही काली तू ही सीता।
पतित तारिणी हे जग पालक, कल्याणी पापी कुल घालक।।

शेष सुरेश न पावत पारा, गौरी रूप धर्यो इक बारा।
तुम समान दाता नहिं दूजा, विधिवत करें भक्तजन पूजा।।

रूप भयंकर जब तुम धारा, दुष्ट दलन कीन्हेहु संहारा।
नाम अनेकन मात तुम्हारे, भक्तजनों के संकट टारे।।

कलि के कष्ट कलेशन हरनी, भव भय मोचन मंगल करनी।
महिमा अगम वेद यश गावैं, नारद शारद पार न पावैं।।

भू पर भार बढ्यौ जब भारी, तब तब तुम प्रकटीं महतारी।
आदि अनादि अभय वरदाता, विश्वविदित भव संकट त्राता।।

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा, उसको सदा अभय वर दीन्हा।
ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा, काल रूप लखि तुमरो भेषा।।

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे, अरि हित रूप भयानक धारे।
सेवक लांगुर रहत अगारी, चौसठ जोगन आज्ञाकारी।।

त्रेता में रघुवर हित आई, दशकंधर की सैन नसाई।
खेला रण का खेल निराला, भरा मांस-मज्जा से प्याला।।

रौद्र रूप लखि दानव भागे, कियौ गवन भवन निज त्यागे।
तब ऐसौ तामस चढ़ आयो, स्वजन विजन को भेद भुलायो।।

ये बालक लखि शंकर आए, राह रोक चरनन में धाए।
तब मुख जीभ निकर जो आई, यही रूप प्रचलित है माई।।

बाढ्यो महिषासुर मद भारी, पीड़ित किए सकल नर-नारी।
करूण पुकार सुनी भक्तन की, पीर मिटावन हित जन-जन की।।

तब प्रगटी निज सैन समेत, नाम पड़ा मां महिष विजेता।
शुंभ निशुंभ हने छन माहीं, तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं।।

मान मथनहारी खल दल के, सदा सहायक भक्त विकल के।
दीन विहीन करैं नित सेवा, पावैं मनवांछित फल मेवा।।

संकट में जो सुमिरन करहीं, उनके कष्ट मातु तुम हरहीं।
प्रेम सहित जो कीरति गावैं, भव बन्धन सों मुक्ती पावैं।।

काली चालीसा जो पढ़हीं, स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं।
दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा, केहि कारण मां कियौ विलम्बा।।

करहु मातु भक्तन रखवाली, जयति जयति काली कंकाली।
सेवक दीन अनाथ अनारी, भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी।।

दोहा

प्रेम सहित जो करे, काली चालीसा पाठ,
तिनकी पूरन कामना, होय सकल जग ठाठ।।

मां विंध्यवासिनी चालीसा pdf

                                      काली चालीसा pdf

काली-चालीसा-4444.pdf

×

Leave a comment